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भारत में मीडिया उपभोग

मीडिया के चारों क्षेत्रों में से प्रिंट का भारत में सबसे  पुराना इतिहास रहा है, सबसे पहला  अखबार 1780 में प्रकाशित हुआ था जबकि दूसरे स्थान पर  रेडियो 1924 में अस्तित्व मे आया। भारत ने अपना पहला टेलीविज़न प्रसारण स्वतंत्रता प्राप्त करने के एक दशक से भी अधिक समय बाद सितंबर 1959 में किया।  समाचार पत्रों और रेडियो के सहारे सूचना प्राप्त करने वाली पीढ़ियों के लिए, टेलीविजन का संचार माध्यम के रूप में स्थापित होना एक मील का पत्थर था। नब्बे के दशक तक प्रसार भारती दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो के तहत राज्य के ही नियंत्रण में रहा और आगे तीन दशक बाद 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान भारत को विदेशी समाचार टेलीविजन के माध्यम से देखने का मौका मिला। एक ऐसे देश के लिए जो सिर्फ दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमो को ही प्रसारित कर पा रहा था, निश्चित तौर पर यह एक ऐतिहासिक पल था।

1991 में, उदारीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था के द्वार खुलते ही एस. टी. ए. आर. (सैटेलाइट टेलीविजन एशियाई क्षेत्र) टीवी और ज़ी. टीवी, भारत के पहले हिंदी उपग्रह चैनल और साथ ही अन्य उपग्रह चैनल भी अस्तित्व मे आए। इन तमाम घटनाक्रमों ने भारतीयों के टेलीविजन उपभोग करने के तरीके को हमेशा के लिए बदला, पहली बार भारतीय निजी क्षेत्रों द्वारा उत्पादित सामग्री को देखने में सक्षम थे जो कि दूरदर्शन द्वारा उत्पादित सामग्री के एकदम विपरीत थी। उस समय नये तरह के कार्यक्रमों के प्रारूपों, रंगीन नए एंकर, मनोरंजन की एक पूरी नई भिन्न दुनिया मे प्रवेश करना सचमुच ही आकर्षक, अद्भुत और मनोरंजक था ।

2018 के दौर की बात करें तो भारत में मीडिया की खपत और परिदृश्य दोनों ही अभूतपूर्व रूप से बदल रहा है, बाजार मे स्मार्टफोनों की बाढ़ है और साथ- साथ प्रतिस्पर्धी रूप से डेटा पैक और लगातार बढ़ती इंटरनेट की गति और विस्तार ने यह साबित किया है कि मीडिया आज वस्तुतः सभी के हाथों में है। यह परिघटना, रिलायंस की सस्ती मोबाइल डेटा योजनाओं के कारण भी संभव हुई है, जिसे ‘जियो’ कहा जाता है। शहरी भारत में ग्रामीण भारत की तुलना में अधिक जियो (Jio) लिए गए, ‘टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया’ के अनुसार प्रतिव्यक्ति घनत्व- भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक सौ व्यक्तियों के लिए जियो कनेक्शन की संख्या शहरी क्षेत्रों- 152% से 170% तक जा रही है, लेकिन ग्रामीण भारत में केवल 2%  ही है। भारत सरकार ने अपनी डिजिटल इंडिया पहल के माध्यम से, इस ग्रामीण-शहरी भाग के अंतर को संबोधित करने की योजना बनाई है। यह जानते हुए कि ग्रामीण क्षेत्रों में ‘कनेक्टिविटी’ की कमी है, सरकार अब वर्ष 2020 तक सभी ग्राम पंचायतों  (ग्राम-स्तरीय प्रशासनिक इकाइयों) को 1 जीबीपीएस (गीगाबाइट प्रति सेकंड) ‘कनेक्टिविटी’ प्रदान करने की योजना बना रही है और वर्ष 2022 तक यह बढ़कर 10 जीबीपीएस हो जाएगा।

डिजिटल मीडिया की खपत संदेहास्पद तरीके से बढ़ रही है – ‘बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप’ (बीसीजी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में पहले से ही 250 मिलियन डिजिटल स्क्रीन हैं - जिसमें स्मार्टफोन, टैबलेट, लैपटॉप और डेस्कटॉप शामिल हैं। यह संख्या टीवी स्क्रीन और फिल्म स्क्रीन की कुल संख्या से अधिक है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, जहां तक ​​वीडियो खपत की बात है, पारंपरिक टीवी वीडियो का 82% लोग उपभोग करते हैं, जबकि केवल 18% लोग डिजिटल वीडियो का उपभोग कर रहे  हैं, हालांकि यह परिदृश्य बदल रहा है, भारत तेजी से पारंपरिक मीडिया - जैसे कि टेलीविजन और रेडियो आदि पारंपरिक सूचना माध्यमों से दूरी बना रहा है और स्मार्ट फोन, वेब चैनल  और डिजिटल मीडिया की ओर आकर्षित हो रहा है। ‘डेलॉइट इंडिया’ की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वायरलेस नेटवर्क 750 मिलियन नए उपयोगकर्ताओं को परिवर्तित करेगा, यह तमाम उपभोक्ता पहले इंटरनेट का उपयोग नहीं कर रहे थे। रिपोर्ट यह भी बताती है कि वर्ष 2023 तक सभी मोबाइल ग्राहकों में 90% ब्रॉडबैंड ग्राहक शामिल हुए। यह एक महत्वपूर्ण संख्या है और इस तथ्य की ओर इशारा करती है कि मोबाइल फोन के माध्यम से ऑनलाइन मीडिया की खपत भविष्य का रास्ता तय करेगी।

यहां कुछ दिलचस्प आंकड़े हैं जो एक कहानी बताते हैं, ‘डेलॉइट’ रिपोर्ट के अनुसार, "डिजिटल मीडिया: राइज़ ऑफ़ ऑन-डिमांड कंटेंट", भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के कुल व्यय  से जुड़े हैं, उपभोकर्ताओं का औसतन 14% समय और मनोरंजन पर मासिक खर्च 17% है।  2012 और 2014 के बीच, एक इंटरनेट उपयोगकर्ता के मोबाइल और मनोरंजन पर संयुक्त खर्च 34% बढ़ गया, डिजिटल मीडिया पर उपयोगकर्ताओं द्वारा प्रति माह खर्च विशेष रूप से मनोरंजन पर किया जाना वाला व्यय  2020 तक 2.5 गुना बढ़ने की उम्मीद है। मोबाइल के माध्यम से मीडिया की खपत के विषय में एक दिलचस्प तथ्य है कि भारत में ऑनलाइन मीडिया की खपत शानदार है। 2017 के, के.पी.एम.जी. और गूगल के एक अध्ययन में कहा गया है कि 2011 और 2016 के बीच भारतीय भाषाओं की सदस्यता बढ़ने (मिश्रित वार्षिक विकास दर) की दर 41% थी। 2011 और 2016 के बीच के पांच वर्षों में भारतीयों ने अपनी भाषा में उपभोग करने वाले मीडिया को 42 मिलियन से 234 मिलियन तक बढ़ाया। जबकि 2016 के अंत में अंग्रेजी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 175 मिलियन थी।

आज, एक औसत मोबाइल वेब उपयोगकर्ता प्रतिदिन 6.2 घंटे मोबाइल मीडिया और लगभग 79 मिनट डेस्कटॉप मीडिया और 6.2 घंटे मीडिया उपभोग करता है, खपत का यह आंकड़ा चौंका देने वाला ही है। भारतीय बाजार अनुसंधान ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण भारत के 92% लोग इंटरनेट का उपयोग करने के लिए मोबाइल फोन का प्रयोग करते हैं, जबकि केवल 77% शहरी उपयोगकर्ता मोबाइल फोन से इंटरनेट का उपयोग करते हैं। शहरी भारत के 17% लोग इंटरनेट का उपयोग करने के लिए लैपटॉप और डेस्कटॉप का उपयोग करते हैं, जबकि केवल 7 प्रतिशत ग्रामीण भारत के उपयोगकर्ता इंटरनेट एक्सेस करने के लिए लैपटॉप या डेस्कटॉप का उपयोग करते हैं। इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में 69% शहरी उपयोगकर्ता ऑनलाइन संचार के लिए इंटरनेट का उपयोग करते हैं, 68% सोशल नेटवर्किंग के लिए, 50% मनोरंजन के लिए, 34% ऑनलाइन शॉपिंग के लिए और 27% ऑनलाइन सेवाओं के लिए उपयोग करते हैं। जबकि, ग्रामीण भारत में मनोरंजन में 39%, सामाजिक नेटवर्किंग के लिए 34%, संचार के लिए 31% और ऑनलाइन टिकटिंग के लिए 12% , इन सब मे मनोरंजन के लिए उपयोग सबसे ऊपर है।

एक बहुत हालिया और बेहद सफल माध्यम ओटीटी - ओवर द टॉप - स्ट्रीमिंग बाजार का है जो पारंपरिक टेलीविजन सामग्री को सीधे अपने स्वयं के अनुकूलित ऐप के माध्यम से स्मार्टफोन तक पहुंचाता है। भारतीय मोबाइल विज्ञापन कंपनी, जना- 2018 की पहली तिमाही के आंकड़ों के अनुसार, कंटेंट स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म हॉटस्टार, भारत का सबसे लोकप्रिय ओटीटी वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म है, हॉटस्टार वीडियो स्ट्रीमिंग और डाउनलोड 70% है, 13% पर  सोनी लाइव के द्वारा , 11% के साथ वायकॉम 18 का वूट, 5% पर अमेज़न प्राइम वीडियो और 1.4% पर नेटफ्लिक्स के माध्यम से होता है।

लेकिन क्या यह कहना सही होगा कि ऑनलाइन मीडिया खपत के विस्फोट से अखबारों और टेलीविजन आदि पारंपरिक मीडिया को खतरा है? ‘जर्नल ऑफ सोशलोमिक्स’ द्वारा किए गया एक शोध अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि युवा पीढ़ी के बीच ऑनलाइन समाचार खपत की प्रवृति अधिक है, पुरानी पीढ़ी अभी भी अपनी दैनिक सूचना के लिए पारंपरिक समाचार पत्रों को पसंद करती है। हाल ही में प्रसारित एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि 2016 के दौरान भारत में 183 मिलियन टीवी बढ़े हैं। हालांकि ऑनलाइन मीडिया की खपत में आसन्न उछाल एक निर्विवाद तथ्य है, एकल ब्रॉडकास्टर के रूप में शुरुआत करने वाला भारत आज ऑडियो और वीडियो सामग्री की खपत के लिए एक गुलजार बाजार है। निजी मोबाइल ऑपरेटरों ने डेटा को सस्ता और सुलभ बना दिया है, लगातार, इंटरनेट की गति में सुधार और विस्तार भारत को विभिन्न मीडिया खपत के लिए एक व्यापक बाजार बनाता है।

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