भारत में मीडिया विनियमन
भारत में मीडिया का एक लंबा इतिहास रहा है, गत वर्षों से यह बड़े पैमाने पर डिजिटलाइज़ेशन और उच्चतर इंटरनेट उपयोग से प्रेरित है। मीडिया से संबंधित कानून आत्म-सेंसरशिप, भारत की कानूनी परंपरा और ब्रिटिश औपनिवेशिक युग की गहराई में निहित हैं। मीडिया सेंसरशिप से संबंधित शुरुआती नियमों को 1799 से देखा जा सकता है, जब तत्कालीन गवर्नर जनरल, (मार्क्लेस ऑफ वेलेस्ली) ने भारत में प्रेस को विनियमित करने के लिए पहला नियम पेश किया था। आज भारत इससे संबंधित कई कानून, नियम, विनियम दिशानिर्देश और नीतियां हैं, इतने अधिक नियम कानूनों की वजह से भारत अत्यधिक 'विधायी देश' प्रतीत होता है। हालांकि, मीडिया एकाधिकार और मीडिया संकेंद्रण के क्षेत्र में यह कानून और नियम काफी हद तक असंगत, अव्यवस्थागत, अपर्याप्त और बड़े पैमाने पर अप्रभावी हैं।
मीडिया संकेंद्रण पर समग्र कानूनों में एकरूपता, सुसंगतता और प्रभावशीलता का अभाव है। तेजी से बदलते मीडिया परिदृश्य में, 1885 से अब तक, 100 साल पुराने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम अभी भी प्रसारण और डिजिटल मीडिया के कुछ पहलुओं को नियंत्रित करता है। मीडिया से संबंधित ऐसे कई अन्य कानून और नियम आज भी मौजूद हैं। यह प्रेस स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों की गंभीरता, विशेष रूप से इंटरनेट के उपयोग से संबंधित है। दूरसंचार और आंतरिक मंत्रालय ने समय-समय पर नए दिशानिर्देश जारी कर इस दिशा मे उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।
मीडिया स्वामित्व को प्रदर्शित करने के उचित मानदंडों के लिए व्यापक ढांचे का अभाव है। चूंकि कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत डेटा का खुलासा विभिन्न मापदंडों और एकत्रीकरण के स्तरों पर आधारित है, जिससे, मीडिया के एकाधिकार और संकेंद्रण की सीमा और विधि के बारे में तुलना और अध्ययन के लिए डेटा अनुपयोगी हो जाता है।
मीडिया के केंद्रीकरण को रोकने के कानून लाने के लिए अतीत में कई प्रयास हुए हैं। ब्रॉडकास्टिंग बिल, 1997 और ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज रेगुलेशन बिल, 2006 भी प्रस्तावित किया गया था, लेकिन यह अभी कानून मे परिणत नहीं हो सका है। 1996 के विधेयक ने क्रॉस मीडिया स्वामित्व, विदेशी स्वामित्व का निषेध किया और प्रस्तावित किया कि किसी भी विज्ञापन एजेंसियों, राजनीतिक या धार्मिक निकायों और सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित निकायों को टेलीविजन चैनलों के लिए लाइसेंस नहीं दिया जाएगा। इसने ब्रॉडकास्टिंग अथॉरिटी ऑफ इंडिया की स्थापना की भी मांग की।
इस प्रकार, 2006 के विधेयक ने मीडिया संकेंद्रण रोकने के लिए एक स्वतंत्र नियामक स्थापित करने और ब्याज संचय पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। नवंबर, 2013 में ट्राई ने केबल सेवाओं में एकाधिकार और बाजार के प्रभुत्व से संबंधित सिफारिशें भी दी थीं। सिफारिश में एक राज्य में एकल केबल कंपनी द्वारा आयोजित बाजार हिस्सेदारी पर प्रतिबंध शामिल था। मल्टी-सिस्टम ऑपरेटरों और स्थानीय केबल ऑपरेटरों के बीच विलय और अधिग्रहण में पूर्व अनुमोदन का भी प्रस्ताव किया गया है लेकिन यह उसी अवस्था मे लागू होगा जब कि यह देश में केबल वितरण के एकाधिकार पर जाँच करने के लिए प्रभावी स्थिति में हो।
हालांकि, MIB का कहना है कि ये सिफारिशें लागू करने के लिए अव्यावहारिक और असंभव थीं और इसलिए उन्हीं मुद्दों को सीसीआई के पास विचार के लिए भेजा गया था। जनवरी, 2019 मीडिया स्वामित्व से संबंधित मुद्दों से संबंधित ट्राई की सिफारिशें , 12 अगस्त 2014 से अंतर-मंत्रालयी समिति के अधीन विचाराधीन हैं।
भारत में मौजूदा विधान अथवा कानूनों में मीडिया संकेंद्रण की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है और न ही यह शब्द विशेष रूप से दर्शकों के हिस्से, परिचालन, टर्न/ओवर/राजस्व, शेयर पूंजी या मताधिकार के संदर्भ में परिभाषित किया गया है। मीडिया संकेंद्रण को प्रतिस्पर्धी तटस्थता बनाए रखने और बाजार में प्रतिकूल प्रतिस्पर्धा को रोकने के संदर्भ में ही परिभाषित किया और समझा गया है। एमआईबी और ट्राई द्वारा जारी किए गए कानूनों, दिशा-निर्देशों और विनियमों के अवलोकन के बाद, यह स्पष्ट है कि ये कानून प्रसारण में नियंत्रण वितरण/एकत्रीकरण का प्रयास करने वाले एकल व्यक्ति/कंपनी या समूह को ध्यान में रखते हैं।
मीडिया एकाग्रता से संबंधित कानून में यह अंतर न केवल ऊर्ध्वाधर या क्षैतिज एकीकरण की तरह विभिंन पदों की विशिष्ट परिभाषा की कमी के कारण होते हैं, बल्कि यह भी विभिन्न कानूनों और मीडिया एकाधिकार, संकेद्रण के मुद्दों पर विभिन्न व्याख्याओं के रूप में सामने आता है, यह कई प्राधिकरणों के बीच क्षेत्राधिकार मुद्दों के प्रति अस्पष्ठता के कारण संघर्ष की ओर ले जाता है। ऐसे कई निकाय हैं जो भारत में मीडिया को विनियमित करते हैं, जैसे कि भारतीय प्रेस परिषद, जो पत्रकार या मीडिया संगठन की नैतिक विफलताओं, समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण से संबंधित मामलों में प्रेस के खिलाफ शिकायतें स्वीकार करता है। टीवी के लिए एक स्व-विनियामक संगठन है, भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) दूरसंचार क्षेत्र को विनियमित करता है, फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) फिल्मों और टेलीविजन शो की सामग्री को नियंत्रित करती है, समाचार प्रसारक संघ (एनबीए) ने चेतावनी दी, और कहा है कि वह अपने कोड के उल्लंघन के लिए प्रसारक को 100,000 आईएनआर (लगभग1.440 अमरीकी डालर) तक की राशि जुर्माना कर सकते हैं ।
मीडिया के एकाधिकार के कारण कानून और प्राधिकारियों के बीच संघर्ष उत्पन्न होता है, प्रतिस्पर्धा की कसौटी पर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। यह अवधारणा अपने आप मे ही दोषपूर्ण है क्योंकि यह जरूरी नहीं कि प्रतिस्पर्धा, खबर की बहुलता सुनिश्चित करने या मीडिया संकेंद्रण को रोकने में सक्षम हो। राजनीतिक रूप से संबंधित स्वामित्व वाले मीडिया आउटलेटस, मीडिया व्यवसाय में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और तेज गति से विस्तार कर रहे हैं। हालांकि, भारत में मीडिया के स्वामित्व सरंचना जटिल है जिसका पता लगाना मुश्किल है क्योंकि मालिकों या उनके परिवार के सदस्यों की राजनीतिक संबद्धता का खुलासा करना इस व्यवसाय की कोई अनिवार्य आवश्यकता नहीं है।
रेडियो के लिए नियामक ढांचा
जबकि भारत मे सूचना और प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) सार्वजनिक और निजी टेलीविजन और रेडियो प्रसारण का प्रबंध करने वाला निकाय है। ऐसे मे निजी एफएम रेडियो और सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को एयर ब्रॉडकास्ट कोड का पालन करना चाहिए, यह ‘मित्र देशों को ‘धार्मिक समुदायों के हमले’ हिंसा के लिए उकसाना’ आदि की आलोचना की अनुमति नहीं देता।
एमआईबी लाइसेंस प्रदान करने वाली इकाई के रूप मे कार्य करता है साथ ही प्रसारकों की सामग्री पर नज़र रखता है, जबकि ट्राई एक विनियामक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है। सार्वजनिक प्रसारक की निगरानी, प्रसार भारती अधिनियम, 1990 के अंतर्गत स्थापित एक संवैधानिक स्वायत्तशासी निकाय है जो 23 नवम्बर, 1997 को अस्तित्व में आया। सार्वजनिक सेवा प्रसारण के उद्देश्य आकाशवाणी और दूरदर्शन के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं जो पहले एमआईबी के अंतर्गत मीडिया इकाइयों के रूप में कार्य कर रहे थे, चूंकि वह अब उपरोक्त तिथि अनुसार प्रसार भारती के संघटक बन गए थे।
केवल सामुदायिक रेडियो स्टेशनों (सीआरएस) के मामले में ही स्वामित्व से संबंधित कानून हैं, सीआरएस की नीति में कहा गया है कि सीआरएस के पास ऐसी स्वामित्व और प्रबंधन संरचना होनी चाहिए जो उस समुदाय को प्रतिबिंबित करती हो जिस समुदाय का सामुदायिक रेडियो स्टेशन सेवा करना चाहता है।
एफएम रेडियो प्रसारण सेवाओं, 2011 के नीतिगत दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि राजनीतिक दल को चैनल संचालित करने की अनुमति के लिए आवेदन करने से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। यदि परिवार का कोई सदस्य एक ही कंपनी में निदेशक है, तो कंपनी अधिनियम, 2013 और अन्य क़ानूनों के अनुसार, परिवार के सदस्य के नाम का खुलासा वार्षिक रिपोर्ट में किया जाना आवश्यक है। हालांकि यह परिवार के सदस्य के रूप में नहीं बल्कि एक ऐसे व्यक्ति के रूप में होगा जो कंपनी में एक विशेष पद धारण करता है। जबकि किसी भी मीडिया कंपनी में किसी राजनीतिक दल या उसके परिवार के सदस्यों से जुड़ाव का खुलासा करने की कोई आवश्यकता नहीं है, तथापि चुनाव प्रसारणों के संबंध में एनबीएसए के स्व-विनियामक दिशानिर्देशों में यह कहा गया है कि “समाचार चैनल किसी पार्टी या उम्मीदवार की ओर, किसी भी राजनीतिक जुड़ाव का खुलासा करें...” जिसके द्वारा जनता यह अनुमान कर सकती है कि क्या कोई विशेष समाचार चैनल, यदि यह किसी पार्टी के प्रति राजनीतिक संबद्धता का खुलासा करता है, या तो पार्टी द्वारा वित्त पोषित है या अनिवार्य रूप से ऐसी किसी राजनीतिक पार्टी के स्वामित्व में है।
हालांकि रेडियो अधिक नियंत्रण मे दिखलाई पड़ता है, संकेद्रण और स्वामित्व संबंधी नियमन सहित सभी पहलुओं मे यह दिखलाई पड़ता है, तथ्य यह भी है कि निजी एफएम स्टेशनों को स्वतंत्र समाचारों के उत्पादन पर रोक है और समाचार रेडियो में सार्वजनिक प्रसार भारती का एकाधिकार है ।
प्रिंट मीडिया के लिए नियामक ढांचा
भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) एक वैधानिक निकाय है जो भारत में प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करता है। इसे प्रेस परिषद अधिनियम 1978 के अंतर्गत स्थापित किया गया था, इसमें एक अध्यक्ष और 28 अन्य सदस्य शामिल थे। इसका प्राथमिक उद्देश्य "प्रेस की स्वतंत्रता को संरक्षित करना और भारत में समाचार पत्रों और समाचार एजेंसियों के मानकों को बनाए रखना और सुधारना" है।
पीसीआई जांच कर रिपोर्ट जारी कर सकता है, मगर गलती पाए जाने पर इसे केवल चेतावनी देने, भर्त्सना और निंदा करने या अस्वीकृत करने के अतिरिक्त कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है और न ही यह व्यक्तिगत, पत्रकारों और प्रकाशनों पर कोई जुर्माना ही लगा सकता है। इसके अतिरिक कुछ अन्य कानून भी हैं जो प्रिंट मीडिया पर लगाए गए विनियमों से संबंधित हैं, इसमे प्रेस और पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1867 शामिल है, इसके अंतर्गत सभी प्रिंटिंग प्रेसों के लिए नियुक्त प्राधिकारी का पंजीकरण कराना अनिवार्य है।
समाचार पत्र (मूल्य और पृष्ठ) अधिनियम 1956 केन्द्र सरकार को समाचारपत्रों के पृष्ठ संख्या और आकार के संबंध में मूल्य विनियमित करने तथा विज्ञापन मामले के लिए आबंटित किए गए स्थान आबंटन को विनियमित करने का अधिकार प्रदान करता है। प्रेस से संबंधित कुछ अन्य विधान अथवा नियमो में न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 और ब्रिटिश काल के कानून, सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923 है जिसका उपयोग पत्रकारों और सूचना प्रदाताओं के विरुद्ध भी हुआ है।
टेलीविज़न के लिए नियामक ढांचा
भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम 1956 ब्रिटिश-युग का कानून है जिसका उपयोग अंग्रेजों द्वारा भारत में अपने शासन के दौरान टेलीग्राफ संचार को नियंत्रित करने और रोकने के लिए किया गया था। पुराना कानून होने के बावजूद, यह भारत मे आज, अभी भी अधिकतर आधुनिक संचार उपकरणों तकनीक, प्रसारण सेवाओं, सैटेलाइट रेडियो और इंटरनेट सहित सभी के लिए नियामक ढांचे की बुनियादी नींव है। राज्य के स्वामित्व वाले दूरदर्शन द्वारा अक्सर क्रिकेट मैचों के प्रसारण अधिकारों का दावा करने के लिए इसका हवाला दिया जाता रहा है। भारत में प्रसारण को नियंत्रित करने वाले अन्य कानूनों सहित, संपूर्ण कानूनी ढांचों की श्रृंखला है जिसमें केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम, 1995, भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरणअधिनियम1997, प्रसार भारती (भारतीय प्रसारण निगम) अधिनियम 1990, टेलीविजन चैनलों की डाउनलिंकिंग के लिए नीतिगत दिशा-निर्देश और अन्य बातों के साथ-साथ डीटीएच लाइसेंस प्राप्त करने के लिए दिशा-निर्देश भी शामिल हैं। समाचार चैनल स्व-विनयमन निकाय, समाचार प्रसारक संघ (एनबीए) द्वारा नियंत्रित किए जाते हैं।
नेट न्यूट्रैलिटी (तटस्थता/ निरपेक्षता) से संबंधित कानून
भारत में नेट न्यूट्रैलिटी को नियंत्रित करने वाला कोई विशिष्ट कानून या अधिनियम नहीं है। सैद्धांतिक रूप से सरकार ने पूर्ववर्ती नियामक ढांचे को स्वीकार कर लिया है, जिसमें कहा गया है कि ‘सरकार नेट निरपेक्षता के मौलिक सिद्धांतों और अवधारणाओं के लिए प्रतिबद्ध है अर्थात बिना भेदभाव के सभी के लिए इंटरनेट सुलभ और उपलब्ध रखने के पक्ष मे है’। स्पेक्ट्रम के लाइसेंसिंग और आवंटन के मुद्दों पर संचार मंत्रालय के दूरसंचार विभाग द्वारा कार्यवाही की जाती है जबकि विनियामक पहलुओं पर ट्राई द्वारा कार्यवाही की जाती है। दूरसंचार विभाग ने नेट तटस्थता से संबंधित खंडों को शामिल करके लाइसेंस नियमों में संशोधन किया है इसके माध्यम से सेवा प्रदाताओं को इंटरनेट सामग्री और सेवाओं के खिलाफ भेदभाव करने से रोका जाता है।
मीडिया कंपनियों के स्वामित्व, निवेश और राजस्व स्त्रोतों के संबंध में सूचना और पारदर्शिता के खुलासे के संबंध में, कंपनियों और उद्यमों से संबंधित सामान्य कानून 2013 कंपनी अधिनियम, सेबी विनियम और प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1897 है। कंपनी अधिनियम, 2013 में कंपनियों द्वारा किए जाने वाले कुछ प्रकटीकरण अथवा खुलासे अपेक्षित है, उक्त अधिनियम की धारा 92 सहित यह अनिवार्य है कि प्रत्येक कंपनी अपने शेयरों को सार्वजनिक करते हुए निर्धारित फार्मेट में वार्षिक विवरण तैयार करे, जिसमे प्रतिज्ञापत्र सहित अन्य प्रतिभूतियों और शेयरधारक स्वरूप (पैटर्न), विदेशी संस्थागत निवेशकों के द्वारा या उनकी ओर से शेयरधारकों के नाम, पते, समावेशीकृत देश का नाम, पंजीकरण और उनके शेयर का हिस्सा आदि का उल्लेख हो।
धारा 137 के तहत यह अपेक्षा की जाती है कि वित्तीय विवरण की प्रति के साथ साथ आरओसी और एक समेकित वित्तीय विवरण, यदि कोई हो, जिसमें वित्तीय विवरणों के साथ संलग्न किए जाने के लिए आवश्यक सभी दस्तावेज हों जो कंपनी की वार्षिक आम बैठक में विधिवत अपनाए गए हों, इस प्रकार की वार्षिक आम बैठक की तारीख के तीस दिनों के भीतर इस प्रकार के शुल्क या अतिरिक्त शुल्क के साथ (यदि दिया जाना हो) सहित प्रस्तुत किया जाए। विशेष रूप से, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संबंध में, सभी मीडिया कंपनियों से अपेक्षा की जाती है कि वे टेलीविजन की अपलिंकिंग के लिए नीतिगत दिशानिर्देशों के आधार पर निदेशक, इक्विटी पूंजी के अंश, शेयरधारिता पैटर्न, विदेशी निवेश, निधियों के स्त्रोत का ब्यौरा प्रकट करें।
ऐसे कई कानून भी हैं, जो अभिव्यक्ति की आजादी को गैरकानूनी करार देते हैं। सविधान द्वारा प्रद्दत अभिव्यक्ति की आजादी को प्रतिबंधित और नजरअंदाज कर, कुछ कानून स्वतंत्र नागरिक होने की हैसियत और आनंद की दिशा मे बाधक हैं। संविधान में उल्लिखित प्रतिबंध अनुच्छेद 19 (2) के अधीन राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, लोक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि, किसी अपराध के लिए उकसाना, और संप्रभुता और अखंडता को नुकसान करने की अवस्थिति मे भारत में मीडिया के फ्री स्पीच राइट्स (मीडिया के स्वतंत्र संभाषण अधिकार) पर पाबंदी लगाता है।
तथापि, ऐसे अनेक कानूनों या तो तैयार कर लिया गया है अथवा औपनिवेशिक युग मे बने कानून कुछ संशोधनों के साथ बरकार रखे गए हैं, जो कि मीडिया के स्वतंत्र भाषण को प्रभावित करते हैं। जैसे कि भारत का जासूसी विरोधी अधिनियम, जिसे सरकारी गोपनीयता अधिनियम कहा जाता है। औपनिवेशिक युग में इस अधिनियम का उद्देश्य राज्य की गोपनीयता सुनिश्चित करना था। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर पत्रकारों और सूचना- प्रदाताओं के खिलाफ बारंबार उपयोग किया जाता रहा है। इसी प्रकार, आईटी अधिनियम, 2002 की धारा 66 ए जिसे उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक करार दिया था, के अंतर्गत कई लोगों को इंटरनेट पर "कथित रूप से आपत्तिजनक" समझे जाने वाली सामग्री पोस्ट करने के लिए गिरफ्तार किया गया था।
पिछले कुछ वर्षों में भारत में जन मीडिया के नियमन में प्रवृत्ति हावी है वह यह कि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर सरकार का नियंत्रण बढ़ता जा रहा है, यह विद्रोह प्रभावित जम्मू और कश्मीर मे स्पष्ठ रूप से देखा जा सकता है जहां राज्य-स्थानीय सरकार अक्सर विज्ञापन राजस्व रोक कर मीडिया को नियंत्रित करती है ।